योगिनी दशा की कुल अवधि 36 वर्ष की होती है। मंगला, पिंगला, धन्या, भ्रामरी, भद्रिका, उल्का, सिद्धा, संकटा नामक आठ योगिनी दशाएं होती हैं। मंगला एक वर्ष रहती है, पिंगला दो वर्ष, धन्या तीन, भ्रामरी चार, भद्रिका पांच, उल्का छः, सिद्धा सात और संकटा आठ वर्ष की होती है। मंगला मंगलानन्दा, यशोद्रविणदायिनी। पिंगला तनुतेव्याधि, मनसौदु:खसंभ्रमौ। धान्या धनसुहृद्वन्धु नूपंशीमतिनिकरी। भ्रामरी जन्म भूमिघ्नि, भ्रामयेत्सर्वतोदिशम्। भद्रिका सुखसम्पत्ति, विलास बलदायिनी। उल्का राज्यधनारोग्यं, हारिणी दु:खदायिनी। सिद्धा साधयेत् कार्यं, नृपतिनांच राज्यदा। संकटा व्याधिमरणं सर्वदा क्लेश कारिणी। मंगला दशा : मंगला दशा की अवधि एक वर्ष होती है। इसके स्वामी चंद्रमा होते हैं। इस दशा में मन शुद्ध एवं शांत रहता है। इस दशा में व्यक्ति धार्मिक कार्यों में रुचि लेता है इस दशा में ऐसे जातक का झुकाव अच्छे विचारों की ओर अधिक रहता है। पिंगला : पिंगला दशा की अवधि दो वर्ष की होती है। इसके स्वामी सूर्य हैं। ज्योतिष में सूर्य को एक क्रूर ग्रह माना गया है। इसलिए इस दशा के आने से जातक के जीवन में शारीरिक कष्ट, हृदय रोग तथा उसका आचरण गुस्से वाला होता है। धान्या दशा : धान्या दशा की अवधि तीन वर्ष की मानी गई है। इनके स्वामी गुरू हैं यह दशा शुभ होती है। इस दशा में उन्नती, तरक्की की प्राप्ति होती है। गुरू ग्रह धर्म व आध्यात्म का कारक है इस कारण इस दशा में व्यक्ति प्रभु की भक्ति व तीर्थ यात्रा करता है और जीवन में सदगति पाता है। भ्रामरी दशा : भ्रामरी की दशा अवधि चार वर्ष की होती है। इसके स्वामी मंगल हैं, यह दशा व्यक्ति को व्यर्थ का भटकाव देती है। मंगल क्रूर ग्रह होने के कारण पद हानि, मानहानि या स्थानांतरण संबंधी परेशानी दे सकता है। भ्रामरी दशा में घर परिवार के सुख में कमी के योग बनते है किंतु मेहनत और पराक्रम से लाभ प्रदान करने में सहायक होती है। भद्रिका दशा : भद्रिका दशा अवधि पांच वर्ष की होती है। इसके स्वामी बुध हैं। यह दशा व्यक्ति के जीवन में स्नेह व सहयोग को बढा़ती है। इस दशा में व्यक्ति को मित्रो का सहयोग प्राप्त होता है। संत, धनी लोगों की कृपा से मान सम्मान की वृद्धि होती है। उल्का दशा : यह शनि की दशा होती है और इसकी दशा अवधि छह वर्ष की होती है। यह दशा शुभता में कमी करने वाली होती है। इस दशा में धन, यश तथा वाहन की हानी होती है। परिवार में तनाव और मतभेद की स्थिति बनती है। धन का नुकसान इस दशा में ज्यादा होने के योग बनते है। सिद्धा दशा : यह शुक्र की दशा होती है इसकी दशा अवधि सात वर्ष की होती है। यह शुभ दशा होती है। इस दशा में व्यक्ति सुख, सौभाग्य को पाता है। उच्चपद की प्राप्ति होती है। करियर में तरक्की के योग बनते है। संकटा दशा : संकटा दशा राहु की दशा होती है इस दशा की अवधि आठ वर्ष की मानी गई है। यह दशा धन, यश और प्रतिष्ठा की हानि करती है। करियर में समस्या देती है। परिवार से वियोग होता है। परिवार के सुख में कमी के योग बनते है। जातक में मनमानी व जिद्दी होने की प्रवृत्ति अधिक रहती है। ज्योतिषाचार्य : महेश शर्मा